ईगो

By Gulzar

 

ईगो

मैंने एक साया अपना पाल रखा है
आगे पीछे घूमता है जैसे छोटा ‘पोमी’ है
भौंकता नहीं कभी
किसी भी अजनबी पे ये
अपना ही मिले कोई तो काट लेता है
साया मेरा काट ले तो दांत के निषान छोड़ देता है

मैंने अपना ज़हर सब
साये में संभाल रखा है
मैंने एक साया अपना पाल रखा है!!

 

डार्क रूम की रेड लाईट में

‘डार्क रूम’ की रेड लाईट में
‘सिलवर नाईट्रेट’ में जब अपनी
नज़्मों को खंगालता हूं
एक ही चेहरा क्यों उन में हर बार उघड़ता है
ख़ौफ़, हरास, और उबली उबली दो हैरान सी आॅंखें
पेषानी पर नस है एक, हया के साथ उभर आती है
रूहांसे अल्फ़ाज़ लबों पर . . .
होंट खुले से, आधी बात कही और आधी रुकी
रुकी सी . . .
दर्द से ‘‘रो दूं . . . या . . . हंस दूं’’ की हालत में
आॅंखें डुब डुब करती हैं।

सब नज़्मों में तेरा जि़क्र नहीं है फिर भी
एक ही चेहरा क्यों उन में हर बार उघड़ कर आता है!!

Gulzar is a poet above all things. He started his career as a lyricist in the 1963 film Bandini and worked with many music directors including R. D. Burman, Salil Choudhury, Vishal Bhardwaj and A. R. Rahman. He directed films such as Aandhi and Mausam and TV series during the 1970s and 1980s. He was awarded the Padma Bhushan, the third-highest civilian award in India, the Sahitya Akademi Award and the Dadasaheb Phalke Award—the highest award in Indian cinema. He has won several Indian National Film Awards, Filmfare Awards, one Academy Award and one Grammy Award.

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