महामहीम, इसे माफ़ कर दें… शौक बड़ी चीज़ है

शौक की ही तो बात है. वरना कोई सोने के पालनों में पला बच्चा आखिर किसलिए ऐसा करता. तुम्हारी औकात क्या है बे साले. गांड़ धोने को पानी तक आता नहीं तुम्हारी बस्तियों में. बास मारती कमीज़ें पहनकर ब्रायलर मुर्गों की तरह बसों में लदकर, शेयरिंग टैक्सियों में ठुंसकर पहुंच जाते हो मालिक की गाली खाने. तुम्हारी औकात सुबह की बेजान, बे-दूध, बेपत्ती चाय से शुरू होती है. उसी के सहारे जाते हो. मरे-मिचुड़े कपड़े लाद लेते हो. भेंड़चाल में शामिल. दो रुपइए की कोई सिगरेट या एक-दो रुपए का कोई गुटखा. शाम को दोस्तों ने ज़िद की और महीने के शुरुआती दिन रहे तो साले सस्ती वाली व्हिस्की या रम का पउवा लेकर बस स्टैंड के पीछे खड़े हो जाते हो. तरे के बाल भर नशा हो जाए तो अपने को डीसीपी समझने लगते हो. फिर किसी बस में लटककर घर के आस पास और कांखें खुजाते हुए चार रोटियां पेट में. पानी वाली आलू की सब्जी या दाल के साथ. बस, इतने में सपना देख रहे हो. अबे धीरूभाई मरे थे तो आंखें तुम्हें दे गए थे या तुम टाटा-बिरला के दामाद हो. आए बड़े सपने देखने.

 

सपने वही देखते हैं जिन्हें सपनों का शौक होता है. और साले इतना नहीं समझते कि सपने का शौक वही रख सकते हैं जो सपनों को खरीदने की औकात रखते हैं. सपना देखा था नेहरू ने. जवाहर लाल नेहरू. उनके बाप का नाम जानते हो… मोतीलाल नेहरू. बहुत बड़े आदमी थे. सपना देखा था माधवराव सिंधिया ने. इस राजघराने के बारे में तो सुना होगा. सपना देखा था राजीव गांधी ने. इंदिरा के बेटे थे बे. सपना देखा था अमिताभ बच्चन ने. तेजी बच्चन के बेटे हैं वो. सपना देखा है राहुल ने, उनके पास इस मुल्क की वसीयत है. सपना देखा है नरेंद्र मोदी ने. उनका सपना साकार होकर नए आकार ले रहा है. सपना देख रहे हैं जयराम रमेश, उन्हें हर घर में संडास का सपना आता है. सपना देखते हैं अनिल और मुकेश… दुनिया को मुट्ठी में करनेका सपना. सपना अखिलेश की आंखों में है, वो चार्टर्ड विमान में साइकिल लेकर चलते है. ऐसा ही एक सपना देखा था कभी संजू ने. नर्गिस ने नाज़ों-नखरों से पाला था उसे.

 

अब सपना ज़रूरी तो नहीं कि हमेशा अच्छा ही हो. मसलन, हमेशा मुंह मीठा ही किया जाए, यह कोई नियम तो है नहीं. ज़रूरी भी नहीं है. ज़िंदगी का मज़ा तो खट्टे में भी है. स्वाद बदलने में क्या जाता है. अपने संजू बाबा को ही ले लो. पिताजी आंखों का ऑपरेशन कराकर लोकसेवा का काम करते थे. सिनेमा संभला ही था. राजनीति भी संभल गई. सिनेमा से मज़बूत पारी राजनीति में खेली. सफेद कपड़े, उजला रंग, पैनी नाक… लोगों को अच्छे भी लगते थे. नर्गिस तो ख़ैर नर्गिस ही थीं. क्या जलवे थे. शहर दीवाना हुआ फिरता था. बड़े लोग थे इसलिए बेटे ने बड़े लोगों की रवायत को कायम रखते हुए बड़े सपने देखे. बड़े शौक पाले… मसलन, बड़ी टांगों वाली जींस उन दिनों. बड़ी एड़ियों वाले जूते, बड़े बाल. बड़ी बड़ी कारें. अब खेलने का शौक किसे नहीं होता. हमारे देश में तो पिचकारी भी पिस्तौल की तरह बनाई जाने लगी है. इस पिचकारी से संजू को प्यार था. जवानी में भी रहा. बड़ा बाप, बड़ा पैसा, बड़ा शौक तो बड़ी बंदूक भी.

 

अबे चूतिए, दोनाली या राइफल तो उन दिनों चंबल के डकैतों और यूपी, बिहार के छुटभइए दादाओं, बाभनों, ठाकुरों और भूमिहारों के पास भी होती थी. संजू इनसे अलग थे बे. इसलिए बड़ी बंदूक ली. धांय धांय नहीं, रेटटटटट टर्रर्रर्र टर्रर्रर्र वाली. गोले भी लिए. चलाएं, न चलाएं, होनी चाहिए. क्या पता कब तलब लग जाए. रिक्शा थोड़े ही चलाते थे कि जब भूख लगेगी, पिसान खरीदकर टिक्कर या रोटी बना लेंगे. अलहाबाद इनवर्सिटी में भी नहीं पढ़ते थे कि पेट में मरोड़ उठा तो कुर्सी मेज छोड़कर सतुआ घोलने बैठ गए. अबे बड़ी-बड़ी चीज़ें खाते थे. बड़ी कीमती चीज़ें पीते थे. बंदूक भी बड़ी वाली रख ली. चलाई, नहीं चलाई, टेस्ट की, वन-डे की. की या नहीं की. तुमको स्याले इससे क्या मतलब है बे.

 

अब दिल्ली के बड़ी कारों वाले और बड़े बंगले वाले बड़े लोगों को ही ले लो. फ़िल्म जुबैदा के मनोज वाजपेयी की तरह बड़े शौक रखते हैं. ऐसे शौक मुंबइए भी रखते हैं. उस किस्म के घरों से आते हैं. कभी रास्ते पर चलती कार को तफरीहन फुटपाथ पर चढ़ने का दिल कर आए तो क्या किया जा सकता है. तुम भी तो साले फुटपाथ होते हुए भी अक्सर सड़क पर चलते हो. तुम्हारी औकात नहीं है फिर भी चलते हो. ऐसी शौकीन रातों में कभी कभी एकाध बार कोई कार अगर फुटपाथ पर चढ़ गई तो समझदारी यह कहती है कि आप फुटपाथ पर न सोएं, कहीं और जाकर सो जाएं. या सोएं ही क्यों, मज़े करें. रातें होती ही मज़े करने के लिए हैं. तुम क्या समझोगे बे. शौक बड़ी चीज़ है.

 

वैसे, एक बात है. क़ानून बड़ी कर्री चीज़ है. कभी-कभी ही सही, पर रंग दिखा देती है. इससे लोगों को लगता है कि क़ानून जैसी भी कोई चीज़ है. अब देखो न, हमारा संजू, दोबारा शादी करके, समाजवादी बनके, जादू की झप्पी देकर, कितना नेक इंसान बन चुका है. पर सुना दी सज़ा. एक बार हो आए… अब फिर से जाओ. भला ये कोई बात हुई. शौक के लिए कोई सज़ा देता है भला. और सज़ा हो भी तो एक बार हो गई. वो रो लिया, बहन रो ली, पूरी इंडस्ट्री रो ली. सलमान और अरबाज़ रो लिए. दोबारा सज़ा. कमाल है भई. इस देश में क़ानून जैसी कोई चीज़ है कि नहीं. चलो क़ानून छोड़ो, न्याय जैसी कोई चीज़ है कि नहीं. दोबारा सज़ा दे दिया रे बाबा.

 

और… और कम्बख़्त स्याले… देखो उसको. उसको देखो और कुछ सीखो. पूरा देश रो रहा है. काट भी रो रहे हैं, जू भी रो रहे हैं. आमार दीदी भी रो रही है, राजा भी रो रहे हैं. सब रो रहे हैं बे. सब के सब माफी दिलाएंगे. शौक के लिए सज़ा जम्हूरियत के ख़िलाफ़ है. पर संजू है कि अड़ा है… मैं तय तारीख पर आदेश का पालन करूंगा. साला, इसे कहते हैं दिल. देखा स्याले. जितना बड़ा उसका सिर नहीं है, उससे बड़ा दिल है. अरे, बड़े घर का बेटा है बे. तुम्हारे गली मोहल्ले के टुच्चे, टुटपुंजिए लौंडों की तरह नहीं है कि पुलिस इनकाउंटर में इसलिए मार दिया जाए क्योंकि उसके पास कोई देसी कट्टा है, असलहा है… चलता हो, न चलता है. इससे क्या. चल जाता तो. मुठभेड़ में पुलिस का कोई जवान मर जाता तो भारत माता को क्या जवाब देते. इसलिए ठोकना पड़ा. वास्तव स्टाइल, सत्या स्टाइल, वासेपुर स्टाइल.

 

और स्याले, सपना देखने, शौक रखने के लिए औकात कितनी ज़रूरी है यह नहीं समझ आ रहा है तो ज़रा कबीर कला मंच की शीतल साठे और सचिन माली को देख लो. अरे कोई मोटा हाथ मारो, पैसा बटोरो और फिर सपना देखो, शौक पालो. भला बताइए, शौक है गाने का. सपना है देश और दुनिया बदलने का. दलितों के लिए आवाज़ उठाने का. अमा ये भी कोई सपना हुआ. अबे, गाने को तो रिक्शेवाला भी गाता है तो क्या उसे मोहम्मद रफ़ी मान लें. अब चले गए न जेल. नक्सली कहीं के. आए बड़े गीत गाकर क्रांति लाने वाले. पुलिसवाले सपने से जगा देंगे और शौक भी तो ऐसी-तैसी हो ही गई है. अरे तुमको क्यों नहीं समझ आता है रे… ई घोड़ा, पेटी, खोखा, मस्का… ये लिंग्विस्टिक तुम्हारे बाप के भी बस का नहीं है रे.

 

संजू अपराधी नहीं है. संजू ने कोई गुनाह नहीं किया. नायक नहीं, खलनायक हूं मैं महज एक फ़िल्मी गाना था और जिसने भी ये गीत लिखा, उसे सज़ा होनी चाहिए. बताइए भला, संजू से क्या गाना गवा दिया. संजू के बाप हीरो थे, सोशल हीरो भी थे. संजू की मां हीरोइन थी. संजू खुद हीरो है. संजू की बहन पॉलिटिकल हीरो है. संजू के पास बहुत सारे बॉटेनिकल हीरो हैं. वे उसके लिए खड़े हैं. राज्यपाल से सज़ा माफी की गुहार लगाएंगे. राज्यपाल भी अपने हैं. मान ही जाएंगे.

 

भारत की जेलों में आधे से ज़्यादा लोग बेकसूर हैं, बेगुनाह हैं, बिना सुनवाई और न्याय से वंचित हैं. पर वे साले गधे हैं. किसी की किस्मत में जेल लिखा हो तो मुन्ना भाई क्या करें. हमारा संजू मुन्ना भाई है. उसके पास जादू की झप्पी है. तुम साले सर्किट भी नहीं हो. अबे तुमको समझाना टाइम खराब करना है. तुम नहीं समझोगे. ये शौक जो है न… बड़ी चीज़ है.

From a slum based tabloid to BBC world service, over the last 12 years, Panini Anand has worked as a journalist for many media organizations. He has closely observed many mass movements and campaigns in last two decades including right to information, right to food, right to work etc. For a man who keeps a humble personality, Panini is an active theatre person who loves to write and sing as well.

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