ओ गंगा बहती हो क्यों… ?

रुक जाओ. रोक दो अपने प्रवाह को. हिम शिखरों से कह दो कि पसीजना बंद कर दें क्योंकि जिनके लिए वो पसीज रहे हैं वो उसके महत्व पर मूत रहे हैं. कुछ भी नहीं बोलती हो. एकदम शांत. सूखती, लरजती, घबराई हुई पर निरंतरता को बनाए हुए बह रही हो. बहती ही जा रही हो. हर कद़म पर चोट खाती, मैली होती, हिंसा सहती, कहर झेलती पर एकदम निःशब्द. एकदम निर्बाध, एकदम निश्चेष्ट, निरपेक्ष. खाली होती हुई, मैला ढोती हुई. क्यों बहती हो… ओ गंगा.

 

मुझे भगीरथ को खोजना है. वही तो लाया था तुम्हें अपने पुरखों के उद्धार के लिए. सगर के पूरे परिवार को बैकुंठ भेजने के लिए. कपिल मुनि के शाप से मुक्त कराने के लिए वो तुमको खींचता, मैदानों को सींचता हुआ गंगासागर तक पहुंचा था. एक निजी स्वार्थ की खातिर तुम्हारे आगे-आगे चल रहा भगीरथ लेकिन तुम्हें क्या देकर गया. एक अपार विस्तार, जिसके इर्द-गिर्द करोड़ों भरीरथ जमा होते गए. बसते गए. तुम, जो उद्धार के लिए पर्वतों से ढलककर मैदानों पर तैर गई थीं, इन भरीरथों के स्वार्थ के कमंडलों में क़ैद कर दी गईं. भगीरथों की पीढ़ियां तुममें डूबती रहीं, तुमसे जन्म पाती रहीं और तुम, जो तारक बनकर आई थीं, मां बन गईं. भगीरथों ने वसीयतनामे में तुम्हारा नाम लिखवाया-भागीरथी. अब तुम भागीरथी हो. इनके कुल की वधु भी, इनकी जननी भी, इनकी रमणिका और दासी भी.

 

पता नहीं कितने हज़ारों-लाखों बरस पुराना है तुम्हारा वेग, प्रवाह. इसके किनारे जन्मती रही हैं सभ्यताएं. तुम जीवन देती रही हो और मुक्ति भी. तुम्हारी लहरों ने खेतों को सींचा, फसलों को उगाया, पेड़ों को फल दिए, जीवों को, मनुष्य को ज़रूरत की सबसे अहम चीज़ दी. पानी की लहरों को देखते हुए न जाने कितने लोग कवि हो गए, कितनों से सुरों को अपने तारों पर उतारा. तुम्हारी कल-कल में संगीत की तालें हैं. तुम्हारे प्रवाह में ऊर्जा हैं, संचार है, गति है.

 

ऐसे ही सदियों से बहती आ रही तुम न्याय के कटघरे में ला पटकी गई हो. एकदम जीर्ण शीर्ण, कमज़ोर, फटे कपड़े, मैला मस्तक… मनुष्य के बार-बार बलात्कार के निशान तुम्हारी पूरी देह पर साफ दिखाई देते हैं. खरोचों और घावों से तुम भरी पड़ी हो. बड़ी-बड़ी मशीनें तुम्हारी हड्डियों के बीच से रेत खींचकर ट्रक भर रही हैं. कारखानों का कचरा तुम्हारी शिराओं में ज़हर घोल रहा है. तुम्हारे मुंह पर बड़े-बड़े बांध बना दिए गए हैं ताकि तुम कुछ भी न कह सको. न अपने पक्ष में, न अपने शोषण के विरोध में.

 

तुम फिर भी बहती जाती हो. रिस-रिस कर, जीवन की तरह. लगातार शापितों के उद्धार के लिए बह रही हो. हम अपने स्वार्थों में इस कदर डूब चुके हैं कि तुम्हारी गोद का अंदाज़ा तक नहीं रहा. लगातार प्रहार… जैसे बिच्छू के बच्चे अपनी मां पर करते हैं. उसे खाते हैं, खोखला कर देते हैं. तुम्हारे कथित पुत्रों ने तुम्हारे संरक्षण का राग अलापते अलापते कितना ही पैसा डकार लिया है. कितनी ही परियोजनाएं सावन की तरह लोगों पर बरस रही हैं. लोग इस बारिश को तुम तक नहीं, अपने बैंक खातों तक पहुंचा रहे हैं. तुम्हारा सौदा हो रहा है. मांस की दुकान पर जैसे गोश्त के टुकड़े बिकते हैं. सामर्थ्य के हिसाब से कंपनियां हिस्से ले रही हैं. और एक निःशब्द, निर्दोष मां लगातार काट-काटकर बेंची जा रही है.

 

मानव जाति का एक बड़ा हिस्सा खुद अपने अस्तित्व के संघर्षों में जूझ रहा है पर इन संघर्षों के लिए जितनी भी अदालतें हैं, जितने भी क़ानून हैं, उनमें तुम्हारी पैरवी के लिए न तो कोई वकील है और न ही कोई तारीख. तुम्हें बोलने का एक भी मौका नहीं दिया जा रहा है. तुम चुप हो… पता नहीं क्यों. शोषण की अभ्यस्त हो गई हो या फिर तुमको लगता नहीं कि कोई तुम्हारी पीड़ा भी सुनेगा.

 

मैं घबरा जाता हूं इंसान की उस मुर्खता पर जहाँ वो प्रकृति और स्त्री की शक्ति को कमतर आंकने की भूल करता है. तुम जिस दिन अपने शोषण के खिलाफ़ बोलोगी, उस दिन की कल्पना से घबरा जाता हूं मैं. तुम्हारे क्रोध की प्रलय का लोगों को अंदाज़ा कम है या है तो उसे अगली पीढ़ी की चिंता मानने की भूल लगातार की जा रही है. जबकि संकट मुझे सिर पर खड़ा दिख रहा है. तुम्हारा भी और इस इंसान का भी.

 

और एक ऐसे समाज में, जहाँ प्रकृति को सुनने की शक्ति इंसान खो चुका है, तुम लगातार उसे संगीत और शब्द देती बह रही हो. तुम लाखों-करोड़ों को जीवन देती बह रही हो. तुम अपने शोषकों की भी पोषक हो. तुम लगातार बह रही हो. लगातार… ओ गंगा, बहती हो क्यों?

From a slum based tabloid to BBC world service, over the last 12 years, Panini Anand has worked as a journalist for many media organizations. He has closely observed many mass movements and campaigns in last two decades including right to information, right to food, right to work etc. For a man who keeps a humble personality, Panini is an active theatre person who loves to write and sing as well.

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