By Sarla Maheshwari
कश्मीर
धरती के स्वर्ग का है कैसा ये नज़ारा
ज़र्रे-जर्रे पे है दहशत ने पाँव पसारा
ज़र्रे-जर्रे पे है दहशत ने पाँव पसारा
ज़िंदगी है जैसे यहाँ
शतरंज का कोई मोहरा
हर चाल पे है जिसके कड़ा पहरा
मौत जमाये है घर घर में डेरा
आदमी फिर रहा मारा मारा
ज़िंदगी से हारा हारा
शोक में डूबा है जैसे शहर सारा
अब तो
न झरनों में संगीत है, न फूलों में रंगत है
न डल झील में शिकारों की हलचल है
अब तो बस बंदूक़ और बूटों की टहल है
ख़ामोशियों की चहल -पहल है
दरवाज़ों पे आंतक की साँकल है
भीगा हुआ माँ का आँचल है
हर विश्वास यहाँ घायल है
हर शख़्स यहां बेहाल सा है
उलझा हुआ कोई सवाल सा है
कैसा मचा यहाँ बवाल है
ज़िंदगी है गोया कोई मलाल है
मगर फिर भी क्यों तेरा इक़बाल है
हवा-ए-गुल है, बहा-ए गुल है।