July, 2012

 

Saying no to prison walls

किस किस को कैद करोगे? लाखों हैं मुक्ति के पंछी, कैद करोगे किसको लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको इस पिंजरे की सलाखों का लोहा हमने ही निकाला है ये लोहा पिघलाने हमने अपना खून उबाला है लोहा लोहे को पहचानेगा, फिर क्या होगा समझो लेकर पिंजरा उड़ जाएंगे खबर न होगी तुझको The state does not like Deepak Dengle — the…

प्रमाणिक को प्रमाणित करने की निर्लज्जता

पिंकी प्रमाणिक के मामले में जिस तरह से लिंग परीक्षण का क्रम चलता नज़र आ रहा है वोनिर्लज्जता और अभद्रता की हद माना जाना चाहिए. एक के बाद एक दल पिंकी के परीक्षण के लिएउसे किसी सामान की तरह टटोल रहे हैं. जिज्ञासाएं कहीं हाथ लगाती हैं तो कहीं नज़र. कपड़े कितनीबार उतरते और चढ़ते हैं. शरीर के अंगों को लोग हास्य, विस्मय, अचंभे और कौतुहल के साथ देखते हैं.सिर खुजाते हैं और अपने हाथ खड़े करके बाहर आ जाते हैं. पता नहीं लड़की है कि लड़का. हम नहींबता सकते. कहीं और परीक्षण कराइए. हम अंतिम राय दे पाने में असमर्थ हैं.   प्रश्न दो हैं. पहला कि क्या लिंग परीक्षण के लिए ज़रूरी व्यवस्था और विशेषज्ञता के बिना किसी कोबारबार प्रताड़ना की हद तक परीक्षण के नाम पर परेशान किया जाना उचित ठहराया जा सकता है? पिंकी स्त्री है या पुरुष और या फिर दोनों के बीच की कोई और कड़ी जिसमें किसी एक अंग का विकासदूसरे अंग से ज़्यादा है और इसीलिए बचपन से उसे पालतीनहलाती आई मां पिंकी के लड़की होने कादावा करती है. इस स्थिति का सच जो भी हो, छातियों को मसलते हुए पुरुष पुलिसकर्मियों के हाथअखबारों में छपी तस्वीरों में साफ दिखते रहे. पिंकी थाने में परीक्षण से ज़्यादा कौतुहल का विषय बनीरही. परीक्षण के नाम पर अस्पताल और जांच दलों का बर्ताव भी वैसा ही रहा.   तो क्या हम अपनी असमर्थताओं के कारण किसी को बारबार नंगा करते रहें. यह कैसा समाज है किकभी सामान्य से अधिक लंबी नाक वाले बच्चे को गणेश घोषित कर देता है, कभी चार भुजा वालीबच्ची को देवी, और पिंकी जैसे मानव शरीर तो जिज्ञासाओं और कौतुहल की चौखट पर बारबार नंगेहोने को मजबूर हैं. निजता के हनन को किस सीमा तक लेकर जाना चाहते हैं हम. किसी की लैंगिकस्थिति कैसी भी हो, क्या उसके असामान्य या दुर्लभ होने के कारण उसकी निजता से खेलने का हक़हमें मिल जाता है?   दूसरा प्रश्न इससे भी अहम है. मान लीजिए कि पिंकी न लड़की है और न लड़का. तो क्या इस स्थितिमें उसे खेलने का अधिकार नहीं है? क्या किसी की शारीरिक स्थितियों के हिसाब से हम तय करेंगे किवो हमारा प्रतिनिधित्व करे या न करे? आपके पास खेलने के लिए दो वर्ग हैं- पुरुष वर्ग और स्त्री वर्ग.तो क्या बाकी को खेलने का, दौड़ने का, जीतने का, लड़ने का हक नहीं? बैलों और घोड़ों तक के लिएआपने खेल तय कर रखे हैं और किसी विशेष शारीरिक स्थिति वाले मानव शरीर के लिए आपके पासकुछ भी नहीं. क्या पिंकी से देश और समाज का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार छीना जा सकता है?   पिंकी की लैंगिक स्थिति जो भी है, वो उसकी प्राकृतिक पहचान है. किसी को वो दोषपूर्ण दिखती है तोयह उस व्यक्ति का दिवालियापन है क्योंकि ऐसी ही सोच, सामान्य से अलग दिखने वाले लोगों कोकभी पागल, कभी काना, कभी मंदबुद्धि, कभी विकलांग कहलवाती है. हर शरीर अपनी स्थिति में तोपूर्ण ही है. हाँ, आप जिसे सामान्य स्थिति मानते हैं, अगर वो शरीर उससे भिन्न है या अपवाद है तोइसमें न तो उस शरीर का दोष है और न ही वह किसी तरह की दुर्बलता है. वह उस शरीर की विशेषस्थिति है और अपनी उस स्थिति के साथ एक सामान्य सामाजिक जीवन जीने का उस प्राणी को पूराअधिकार है.   किसी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर शाहरुख ख़ान के जूते उतरवा लिए जाएं या किसी मंत्री की तलाशीले ली जाए तो हम विशेषाधिकार हनन और निजता में दखल का रोना गाना शुरू कर देते हैं. हम शरीरखोलकर दिखाती बाज़ार की तस्वीरों को लपलपाती नज़रों से देखते हैं और फिर नैतिक पतन का रोनारोते हैं पर वही मॉडल सामने दिख जाए तो फोटो या ऑटोग्राफ के लिए भागे चलते हैं. सोनिया गांधीकी बीमारी के बारे में पार्टी या परिवार के लोगों से सवाल कर लें तो यह उनकी निजी ज़िंदगी मेंहस्तक्षेप माना जाता है पर पिंकी के साथ लिंग परीक्षण के नाम पर जो हो रहा है वो किसी को निजताऔर नितांत निजी बनावटों के साथ नंगेपन से पेश आने के तौर पर क्यों नहीं देखा जाता.   पिंकी को नंगा करके बारबार ताकझांक कर रहा समाज, उसके एमएमएस बनाकर बाहर लीक कर रहेलोग दरअसल खुद कितने नंगे हैं और नपुंसक भी. ऐसे लोग सिर्फ कुंठा की एक गठरी हैं जिनसे लिंगोंऔर योनियों की तस्वीरें निकलकर सड़कों पर बिखरती चल रही हैं. इन तस्वीरों के इतर उन्होंने शरीरोंमें न तो कुछ देखा है और न समझा है. पिंकी का शरीर पढ़ रहे लोग एक बीमारी से ग्रस्त हैं और उसपरउंगली उठा रहा समाज मानसिक रूप से खुद अपाहिज है. पिंकी पर लगे आरोपों की जाँच से पहलेउसका लिंग निर्धारण एक अनिवार्यता है पर इस लिंग निर्धारण की प्रक्रिया को भी क्या उतना हीगोपनीय और वैज्ञानिक नहीं होना चाहिए था जितना आप अपनी निजता के लिए सुनिश्चित करते हैं.   किसी के उभयलिंगी, अलिंगी, नपुंसकलिंगी होने का मतलब यह नहीं कि आप उसे बंदर समझें औरखुद मदारी हो जाएं. निजता से मत खेलिए, मत नचाइए और उसपर हंसना आपकी मूर्खता काप्रमाणपत्र है.