आसमान से,
पानी नहीं बरसा.
भीगा है सिर
खून कनपटियों से टपक रहा है
सायरन चीर रहा है कानों को
पुलिसवाला बिना देखे
धुन रहा है, रुई की तरह
आग किसने लगाई है- पूछ रहा है समीर
जिसकी शादी तय हो चुकी है
और वो ट्रेनिंग पर है.
आग किसी को नहीं पहचानती है
और न किसी एक की बपौती होती है
पहले होती थी
जब ठकुराइन के घर आग मांगने आती थी नाउन
अपना चूल्हा जलाने के लिए
बदले में बुझाने पड़ते थे शरीर
ठकुराइन के नाखून काटने पड़ते थे
पर अब आग शहर चली आई है
और शहर में बाज़ार ने आग बिखेर रखी है
इस बिखरी आग पर चल रहे हैं लोग,
नंगे पांव
जवान आंखों पर लगा दिए गए हैं काले चश्मे
पीठ पर पड़ रहे हैं कोड़े
गांव में यह दोषमुक्ति थी, शहर में अनुशासन है
जिसके पास कोड़ा है, उसी का प्रशासन है
हाड़-मांस की मशीने, डिग्रियों पर हिसाब लिख रही हैं
और मदारी खेल दिखाकर पैसे बना रहा है
दीवाना कोई भी हो सकता है
कंपनी का मालिक भी, मजदूर भी
दूसरे की छाती पर नाचने वाली दीवनगी
बहुत दिन तक नहीं साध पाती धुंधरू
और पैरों तले रौंद दिया जाता है शोषण
बढ़ते क़दम पार कर लेते हैं लक्ष्मण रेखा
इस खेल में न कोई रावण है, न सीता है
जो लड़ा है, खड़ा है, वही जीता है.
महानगरों में जीत एक धंधा है
और जिनके पास हारने को कुछ नहीं हैं,
उनके हाथ में झंडा है
धंधा, झंडे को खरीदना चाहता है
और झंडा, धंधे को सुधारना
इस अंतर्विरोध में बिक जाते हैं नेता
गांव वाले खाप बन जाते हैं
परदेसी दुश्मन दिखने लगता है
इसी दुश्मन की कमाई से मोटा होकर
सरपंच, सीएम बोलने लगा है जापानी, अमरीकी भाषा
क्योंकि जहाँ जापान है, अमरीका है,
वहां उत्पादन है
जहाँ उत्पादन है, वहां पैसा है,
जहाँ पैसा है, वहाँ परदेसी है
जहां परदेसी है, वहां खोली है, भाड़े के कमरे हैं
बेरसराय में भी, नजफ़गढ़ में भी
मानेसर में भी.
खोली का किराया,
बाज़ार के इन भेड़ियों का हिस्सा है
उत्पादन के कर्मकांड का
यह भी एक घिनौना किस्सा है.
कंपनियों के आगे
टिकाकर घुटने, लोट रही है सरकार
खोजे जा रहे हैं मजदूर
जो न खोलियों में हैं, न चाय की दुकानों पर
न दवाखानों पर, अस्पतालों में भी नहीं.
कॉम्बिंग ऑपरेशन चल रहा है
साथ में राष्ट्रपति भवन के गार्ड,
कर रहे हैं रिहर्सल
भागा हुआ है मजदूर,
पीछे हैं खोजी कुत्ते, अफ़सर
सत्ता हाइकू लिख रही है-
यस सर,
ओके सर,
मानेसर
(translated by Valay)
Though the skies haven’t poured forth rain
The head is drenched
Blood’s dripping from the temples
Sirens are screaming into ears
The ‘blind’ Police are thrashing workers like cotton
Who started the fire, asks Samir
His training is underway
and he will soon be married
Fire is nobody’s friend
nor anybody’s inheritance
Earlier, when the barber’s wife would borrow fire from the landlord’s wife
To light her own mud stove
In return, she had to quench their men’s lust
and trim the nails of the landlord’s wife too
But now, the fire has gone to the city
the markets have spread the fire further
people tread on this fire
barefoot
youthful eyes are shrouded in dark glasses
the back is swollen with welts
in the village it was ‘cleansing’, in the city it is discipline
power is in the hand that holds the whip
machines made of flesh and bones doing petty accounts,
on the back of college degrees
anyone can go into delirium
a factory owner , a labourer
but this frenzied dance
cannot last for long
exploitation will be trampled upon
marching steps will cross the Lakshman Rekha.
In this game there is no Raavan, no Sita
He who has fought, who has stood up, alone is the winner
‘winning’ is a business in big cities
and those with nothing to lose
have flags in their hands
the ‘market’ and the flag
the business wants to buy the flag
and the flag wants to stave the business
leaders are sold amidst this contradiction
villages become khaps
outsiders become enemies
fattened by the income of the same enemies
the village head and chief minister speak in the tongue of the Japanese, the Americans
because it’s Japan and America
where the production is
and where there’s production
is where the money is
and where there’s money
is where the migrant labourer is
the migrant labourer, the outsider
spawns a small economy of hovels on rent,
in Ber Sarai and Najafgarh too
As well as Manesar
a share of the rent goes to the market sharks
the ritualism of production
This, too, is a repulsive story
the government grovels before corporations
the hunted worker is on the run
who is no more in the hovels or tea stalls
not in hospitals, or medical stores
combing operation is in swing
at the same time,
Presidential guards are polishing their brass
the worker is running for his life
behind him are sniffer dogs, officers;
the government recites the Haiku
‘Yes Sir
Okay Sir
Manesar’