नहीं, कतई ग़लती से नहीं लिखा है यह शीर्षक. यही सुनाई दिया था पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान से जहाँ मोदी भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के 10 हज़ार सदस्यों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आजकल कुछ लोग आइडिया ऑफ़ इंडिया की बात कर रहे हैं. फिर अपना आइडिया ऑफ़ इंडिया बताते हुए खुद ही उल्टा बोल गए. बोले, इंडिया ऑफ़ आइडिया. यानी इंडिया आइडिया का और आइडिया किसका, एक औद्योगिक घराने का. तो हो गया न मामला साथ. मोदी का भारत एक ऐसा भारत होगा जिसमें सवा सौ करोड़ लोगों की सत्ता की डोर चंद औद्योगिक घरानों की उंगलियों में थमी होगी. वो राजनीति को भी नियंत्रित करेंगे, संसाधनों को भी. क़ानून को भी और पहचानों को भी. सबकुछ उनका. सेनापति भी. मोदी सेनापति होंगे और पूंजीपति नियंता.
ख़ैर, एक जुमले पर अटक जाना भी कोई बात होती है. अरे, फिसल गई होगी. उनको प्राब्लम है भई. फिसलती रहती है. पटना में अलक्षेंद्र, बिहार में तक्षशिला, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, पटेल और नेहरू… कई उदाहरण है इस फिसलन के. लेकिन इस इंडिया ऑफ़ आइडिया के बाद एक-एक करके वो कुछ मंत्र, श्लोक और उक्तियां बोलते गए. उनके मुताबिक ये उनके सपनों का भारत था. मुझे यह सब गड्ड-मड्ड नज़र आ रहा था. जितना वो बताते जाते थे, उतना ही उल्टा सत्य बड़ा होता जाता था. मोदी मंच से जो आइडिया बता रहे थे, उनके कृत्यों और कार्यशैली के बिंब उसे नकारते चल रहे थे, उनका इतिहास उनकी ही बातों पर अट्टहास कर रहा था. मैंने उनके द्वारा बताए गए ऐसे 10 सूत्र उठा लिए, आप भी देखिए.
1. वसुधैव कुटुम्बकम- हाल के मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान जब वहाँ पहुंचा तो शहर मोदी के चेहरे वाले पोस्टरों से भरा था. मोदी के मद में डूबे दंगाइयों के नारे पीड़ितों को अबतक डरा रहे हैं- मुसलमान का एक स्थान, पाकिस्तान या कब्रिस्तान. यह कौन सी वसुधा का बोध है और कैसा कुटुंब है.
2. सत्यमेव जयते- इसपर क्या ही कहूं. इतिहास के सत्य से तो अनभिज्ञ हैं ही, गुजरात के विकास की जो तस्वीर और जिस सत्य की सत्ता की बात मोदी करते हैं, उसमें झूठ, तोड़-मरोड़ के तैयारी छवियां और कितना सारा संदेह समाहित है. कितनी अपरिपक्वता और अदूरदर्शिता भी. सबकुछ खुद में डूबा और लिपटा हुआ है केवल.
3. आनो भद्राः क्रतवो यंतु विश्वतः – इस सूत्र का मायने सभी दिशाओ से सभी अच्छे विचारों के आने का स्वागत और उनके प्रति सु्ग्राह्यता है. मोदी का संकट यह है कि सभी और अन्य विचार तो दूर की बात है, पार्टी के भी स्वस्थ परामर्श और विचार उनतक नहीं पहुंच सकते. अपने ही विचार में मुग्ध और डूबे व्यक्ति के पास विकास, सृजन, रचनात्मकता और संवर्धन के लिए विचारों का अकाल है और वह इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
4. सर्वे भवन्तु सुखिनः – यानी सभी सुख से रहें. यह मोदी का एक और बड़ा झूठ है. डरे और सहमे समाज को सुखी कैसे मान लिया जाए. कैसे मान लिया जाए कि आदिवासियों से लेकर दलितों, अल्पसंख्यकों तक गुजरात में पसरे सैकड़ों सवालों के बीच सबकुछ सुखमय है.
5. न त्वहं कामये राज्यं – यानी मुझे राज्य की कामना नहीं है, सत्ता की भूख नहीं है. कम से कम मोदी तो ऐसा कतई नहीं कह सकते है. एक ऐसा व्यक्ति जो सत्ता और शक्ति के प्रति हिंसक तरीके से आसक्त है, जिसके लिए सत्ता से बढ़कर न विचार है, न साथी, न व्यक्तित्व, न मूल्य, वह कैसे इसे अपना आइडिया ऑफ़ इंडिया कह सकता है.
6. अहिंसा परमो धर्मः – यानी अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है. इसके बाद अटल जी का राजधर्म था जो उन्होंने मोदी को याद दिलाया था. अस्वस्थ अटल जी के मुंह में तब मोदी ने शब्द डाले थे और कहलवाया था कि पालन हो रहा है. दरअसल, मोदी ने इन दोनों धर्मों को मसल दिया. ख़ैर, इस बारे में ज्यादा कहना भी थोड़ा है. अहिंसा को समझने के लिए मोदी और उनकी मानसिकता से बेहतर उदाहरण हाल फिलहाल के दशकों में कम ही है.
7. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते – यानी जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है. वहाँ देवता बसते हैं. और इन्हीं देवताओं के वास वाले प्रदेश में मोदी जी का राज है जहाँ गर्भ से निकालकर मारे गए थे भ्रूण तलवारों की धार से पेटों को तराशकर. जहाँ ज़िंदा जला दिए गए पति, भाई, बेटे और बाप… औऱतों को अधूरा और टूटा हुआ छोड़कर. जहाँ धर्म के फर्श पर मारी गईं औरतें, उनके साथ बलात्कार हुए. उन्हें तिल-तिल तोड़ा गया. ऐसी पूजा कहीं न हो, मोदी जी. न देश में, न गुजरात में, न दुनिया में.
8. परधन डाले हाथ रे – यहां मोदी सत्य बोल गए. दरअसल पंक्ति तो है कि परधन नव झाले हाथ रे यानी दूसरे के धन को पाने की जो इच्छा न करे लेकिन मोदी बोलते समय ‘नव’ लगाना भूल गए. एक झूठा आइडिया झूठ बनने से बच गया. उन्होंने कहा कि परधन डाले हाथ रे. परधन पर ही माया है. गुजरात के इन शासक महोदय का सत्य केवल सांप्रदायिकता भर नहीं है, उसमें भ्रष्टाचार और अनियमित बंटवारा भी शामिल है.
9. नारी तू नारायणी – नारायणी शब्द सुनते ही पुलिस अधिकारियों के प्रति मिनट की दर से घनघनाते फोन याद आने लगे. दिखाई देने लगी एक युवती जिसका पीछा राज्य का पूरा तंत्र कर रहा है. जिसकी निजता में दखल दिया जा रहा है. जिसका एक-एक क्षण साहेब की नज़र में है. जिसे भ्रम हो सकता है अपने स्वतंत्र और सुरक्षित होने का लेकिन जिसकी सुरक्षा और स्वतंत्रता को प्रतिक्षण बलात ही तोड़ा जा रहा है.
10. मा विद्विषावहै – यानी विद्वेष किसी के प्रति कभी न हो. वाह. विद्वेष की कथा सुननी है तो हरेन पाड्या की पत्नी से पूछिए. संजय जोशी और केशूभाई पटेल से पूछिए. पूछिए कि पूरी पार्टी में ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो अपनी शान में एक लफ़्ज़ की भी गुस्ताखी, कोई दखल या कोई स्वस्थ हस्तक्षेप तक बर्दाश्त नहीं कर सकता. पत्रकारों को जो जवाब नहीं देते, पानी पी-पीकर घूरते हैं. जो हमेशा तपता रहता है अपनी द्वेष-विद्वेष की अग्नि में. जो न खुद आनंद को समझ सकता है और न दूसरे के लिए प्रदान कर सकता है.
सचमुच, वाट एन आइडिया सर जी.