न्याय

By Binit Priyaranjan

 

न्याय

न्याय का क्या मज़हब है?
न्याय की क्या ज़ात है?
क्या सोचे कोई फिर देशभक्त,
जो ये भी सोचने की बात है?

क्या लाभ है न्यायालयों का
जब लिखित में हमे ये ज्ञात है,
के अफज़ल की फांसी का फंदा
आहत जनता के जज़्बात है?

कहाँ पाते हैं न्याय गरीब?
क्या न्याय भी अर्थवाद है?
के वे भी देखें जो कोई ले दिखाए,
वो जो उद्योगपतियों की बिसात है।

देशभक्त, न्याय की परिभाषा क्या है?
क्या इसकी पहचान है?
क्या नहीं इन्ही सवालों का जवाब,
आज़ाद भारत का संविधान है?

क्या न्यायोचित है न्याय का चीर-हरण
यूँ टीवी पर, अख़बारों में?
मानो न्याय बंट रहा हो,
बंद कमरों में, पत्रकारों में!

अंतिम प्रश्न हे देशभक्त!
क्या न्याय सबका सिद्ध अधिकार है?
या सौभाग्य है उन चुनिंदों का,
जिनके संघ पहले ही परिवार है?

Binit is a student of Masters in English Literature from the Delhi University following a degree in Chemical Engineering from BITS, Pilani, Goa Campus and a brief stint with an MNC. He writes poetry in three languages, listens to music in all genres and enjoys playing sports. He's also worked as a freelance copywriter with NGOs such as Boond, Save The Children and The We Foundation.

2 Comments

  • Reply March 4, 2016

    विनीता

    बहुत शानदार समसामयिक अभिव्यक्ति

  • Reply March 5, 2016

    Prakash Bhardwaj

    बेहतरीन बाबा बैद्यनाथ तूम्हे इसी तरह निर्भीक होकर लिखने की शक्ति दे और समाज को आइना दिखाते रहो।
    धन्यबाद

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